Indian Polity

Centre State Relations in India in Hindi

Centre State Relations in India in Hindi: In this post, I am sharing an important information about Centre State Relations in Hindi. So read the article carefully till the end.

केंद्र और  राज्यों के संबंधों का अध्ययन 03 दृष्टिकोण से किया जाता है।

  1. विधायी संबंध
  2. प्रशासनिक संबंध
  3. वित्तीय संबंध

विधायी संबंध– अनुच्छेद 243 से 255 में केंद्र और राज्यों के विधाई संबंधों की चर्चा की गई है। संसद पूरे राज्य व भारत के किसी भी क्षेत्र के लिए कानून बना सकती है। राज्य विधानमंडल पूरे राज्य या राज्य के किसी क्षेत्र के लिए कानून बना सकती है। संसद अतिरिक्त क्षेत्रीय विधान बना सकती है। संसद 4 केंद्र शासित प्रदेशों में कानून नहीं बना सकती यह केंद्र शासित प्रदेश निम्नत: हैं।

  1. अंडमान निकोबार द्वीपसमूह
  2. लक्ष्य दीप
  3. दादरा नगर हवेली
  4. दमन दीव

राज्यपाल संसद के किसी विधेयक को लागू भी कर सकता है तथा उस में संशोधन भी कर सकता है।

Centre State relations in Indian constitution

विधायी विषयों का बंटवारा–  केंद्र व राज्य के बीच विधायी विषयों से संबंधित त्रिस्तरीय व्यवस्था है।

Union List in Hindi: संघ सूची– इस सूची से संबंधित किसी भी विषय पर कानून बनाने की संसद को विशिष्ट शक्ति प्रदान है। इस इस सूची में इस समय 100 विषय हैं लेकिन मूलतः 97 ही हैं।जैसे रक्षा मंत्रालय, विदेश, बैंकिंग व्यापार आदि।

State List in Hindi: tराज्य सूची– राज्य विधानमंडल राज्य सूची में शामिल विषयों पर कानून बनाती है। इस समय इसमें 61 विषय है  लेकिन मूलतः 66 विषय हैं जैसे पुलिस, जन स्वस्थ, सफाई, जेल, स्थानीय प्रशासन, मत्स्य पालन आदि।

Concurrent list in Hindi: समवर्ती सूची इन विषय पर संसद व राज्य विधान मंडल दोनों ही कानून बना सकते हैं। इस समय इसमें 52 विषय हैं लेकिन मूलतः 47 है जैसे अपराधिक, कानून, सिविल प्रक्रिया, विवाह, जनसंख्या नियंत्रण, परिवार नियोजन आदि। 1976 के 42 वें संविधान संशोधन मैं 5 राज्य सूची विषयों को इसमें मिलाया गया।

  1. नापतोल
  2.  शिक्षा
  3. वन
  4. वंयजीव व पक्षियों का संरक्षण
  5. न्याय का प्रशासन

इस तीनों सूचियों को भारत ने कनाडा पद्धति से अपनाया है। इन सूचियों को ऊपर दिए गए क्रम में ही रखा गया है।

यदि समवर्ती सूची के विषय को लेकर केंद्रीय कानून व राज्य कानून में संघर्ष की स्थिति आ जाए तो केंद्रीय कानून राज्य कानून पर प्रभावी होगा। लेकिन राज्य के बनाए हुए उस कानून को राष्ट्रपति की स्वीकृति मिल जाती है तो राज्य का कानून प्रभावी होगा।

राज्य सूची में भी संसद के कुछ कानून– संसद इस सूची में भी कुछ विषयों पर कानून बना सकती है। यदि राज्यसभा घोषणा करें कि संसद को इस सूची में कानून बनाना है तो संसद कानून बनाने के लिए सक्षम हो जाएगी। इस तरह के किसी प्रस्ताव को दो तिहाई का  समर्थन मिलना चाहिए तथा यह प्रस्ताव 1 वर्ष तक प्रभावी रहेगा तथा असंख्य बार 1 वर्ष के लिए एक बार में बढ़ सकता है।

राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान इसमें सारी शक्ति संसद के हाथ आ जाती है तथा वह राज्य  या राज्याों में कानून बना सकती है। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि विधायी विषयों पर कानून बनाने में केंद्र सरकार की स्थिति ज्यादा शक्तिशाली है।

प्रशासनिक संबंध– अनुच्छेद 256  से 263 के 11वे भाग में केंद्र व राज्य के बीच प्रशासनिक संबंधों की व्याख्या की गई है।

कार्यकारी शक्तियों का बंटवारा– केंद्र व राज्य सरकार के बीच कुछ मामलों को छोड़कर विधायी व कार्यकारी शक्तियों का बंटवारा किया गया है।

राज्य व केंद्र के दायित्व– केंद्र को इस मामले में सर्वोच्च शक्ति प्राप्त है तथा राज्य केंद्र के नीचे ही रहकर कार्य करेगा तथा केंद्र ही दोनों के संबंध बनाए रखने के लिए कानून बनाएगा। अगर  नहीं करता है तो राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू हो सकता है। राज्य को संचार के साधनों, रेलवे संपत्ति की रक्षा, अनुसूचित जाति जनजाति के कल्याण आदि को देखना ही पड़ेगा।

कार्यों का पारस्परिक प्रतिनिधित्व– केंद्र अपनी विधाय़ी शक्ति राज्य को नहीं दे सकता। दोनों के बीच आपसी सहमति या विधान के द्वारा स्थापित से ही पारस्परिक सहयोग हो सकता है। केंद्र दोनों रीतियों का प्रयोग कर सकता है पर राज्य एक ही नीति का। केंद्र राज्यों के नदी, घाटी, अंतर राज्य परिषद के गठन आदि पर निर्णय दे सकती है।

सम्मेलन अध्यक्षता
राज्यपालों का सम्मेलन राष्ट्रपति
मुख्य मंत्रियों का सम्मेलन प्रधानमंत्री
मुख्य सचिवों का सम्मेलन कैबिनेट सचिव
मुख्य न्यायाधीशों का सम्मेलन उच्चतम न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश
गृह मंत्रियों का सम्मेलन केंद्रीय गृहमंत्री
विधि मंत्रियों का सम्मेलन केंद्रीय गृहमंत्री

वित्तीय संबंध–  भाग 12 में अनुच्छेद 268 से 293 में केंद्र और राज्यों के बीच वित्तीय संबंध हैं। दोनों के पास कर लगाने का अधिकार  है संघ व राज्य सूची के अनुसार तथा समवर्ती सूची के अनुसार। कर की प्राप्तियों को केंद्र व राज्य के बीच बांटा जाता है। विधानमंडल व्यापार, बिजली की बिक्री, वस्तुओं की खरीद बिक्री आदि पर कर लगा सकती है।

Distribution of Taxes in Hindi: करो का बंटवारा – अनुच्छेद 268 में यह निम्नलिखित कर हैं।  विनिमय पत्रों, चेकों, वादा नोटों, नीतियों, बीमा तथा  शेयरों एवं अन्य अंतरण पर लगाने वाला स्टांप शुल्क। औषधियों एवं प्रशासन की वस्तुओं, अल्कोहल व नारकोटिक्स आदि। इन सभी कारों को केंद्र द्वारा लगाया जाता है तथा राज्यों द्वारा संग्रहित एवं विनियोजित किया जाता है।

अनुच्छेद 268( क)–  इस सेवाकर को केंद्र द्वारा लगाया जाता है पर इसे उपयोग व संग्रहण केंद्र व राज्य दोनों करते हैं।

अनुच्छेद 259– इसको संघ लगाता है व इकट्ठा करता है तथा राज्य को सौंप देता है। इस श्रेणी में आने वाले कर निम्नतम है।

  1. अंतर राज्य व्यापार या वाणिज्यिक वस्तुओं के क्रय विक्रय से
  2. माल या सामान रेल के द्वारा
  3. समुद्री व हवाई कर आदि शामिल है।

अनुच्छेद 270– इस कर को संघ लगाता है तथा इकट्ठा करता है व केंद्र और राज्य के बीच बांटता है। किन्नरों की कुल प्राप्तियों के विवरण की प्रक्रिया राष्ट्रपति द्वारा वित्त आयोग की सिफारिश पर अनुशंसित की जाती है। इसमें कृषि को छोड़कर सभी आय पर लगे हुए कर शामिल हैं।

अनुच्छेद 271– 259 व 270 के कर को संसद कभी भी इसके संघ के लिए छोड़ सकती है।

अनुच्छेद 272– इसके अंतर्गत आने वाले करों को संघ लगाती है तथा इन्हें संघ और राज्यों के बीच बांटा जाता है। जैसे रेलवे, पोस्टल और टेलीग्राफ, टेलीफोन, विदेशी मुद्रा, विदेशी ऋण आदि।

गैर कर राजस्व का वितरण– केंद्र के गैर राजस्व स्त्रोतों से व्यापक प्राप्त किया निम्नलिखित हैं।
डाक एवं तार, रेलवे, बैंकिंग, प्रसारण, सिक्के एवं मुद्रा, समयावधि समाप्त होने पर उगाही आदि।

राज्य के गैर राजस्व स्रोत– सिंचाई, वन, मतस्य पालन, राजस्व सार्वजनिक उपक्रम, समय चूकने पर उगाही इत्यादि।

राज्यों के लिए सहायतार्थ अनुदान– केंद्र द्वारा उसके विकास के लिए भी अनुदान देना पड़ता है। यह अनुदान वित्त आयोग की अनुशंसा पर दिया जाता है।

विवेकाधीन अनुदान (282)– इसके तहत केंद्र राज्य को योजना आयोग की अनुशंसा पर राज्यों को अनुदान प्रदान कर सकते हैं।

केंद्र व राज्यों द्वारा ऋण– केंद्र सरकार भारत या इसके बाहर से भारत की संचित निधि की गारंटी देख कर ले सकती है लेकिन सीमा निर्धारण संसद तय करती है। राज्य सरकार केवल भारत के अंदर से ही ऋण ले सकती है राज्य की संचित निधि की गारंटी देकर तथा समय सीमा विधानमंडल तय करती है।

केंद्र सरकार किसी राज्य को  ऋण दे सकती है या किसी राज्य द्वारा लेने पर गारंटी दे सकती है। केंद्र की परिसंपत्तियों पर राज्य व राज्य की पर केंद्र को कर से छूट होती है लेकिन संसद कर लगा भी सकती है। केंद्र राज्य द्वारा आयातित या निर्यातित वस्तुओं पर कर लगा सकती है।

प्रशासनिक सुधार आयोग– केंद्र सरकार ने मोरारजी देसाई की अध्यक्षता में प्रशासनिक सुधार आयोग  ए आर सी का गठन किया। इस आयोग की रिपोर्ट के अध्ययन के लिए MC सीतलवाड के अधीन एक दल का गठन किया गया और अंतिम रिपोर्ट 1969 में केंद्र सरकार को सौंप दी गई। इसमें केंद्र राज्य संबंधों को सुधारने हेतु 22 शिफारशी प्रस्तुत की जिसमें राज्य में अंतर राज्य परिषद का गठन, राज्यपाल की नियुक्ति की सिफारिश की।

राजा मन्नार समिति– इस समिति ने 1971 में संविधान संशोधन हेतु राज्य में राष्ट्रपति शासन को पूर्णतया समाप्ति के लिए रिपोर्ट भेजी। इस समिति ने अखिल भारतीय सेवाओं को समाप्त करने के लिए भी सिफारिश की थी। केंद्र सरकार ने इसकी सिफारिशों को खारिज कर दिया।

सरकारिया आयोग– केंद्र राज्य परिषद का गठन इसी आयोग की सिफारिश थी जो 1990 में लागू हुई थी।

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