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History of Shaivism- शैव धर्म का इतिहास जानिए

History of Shaivism- शैव धर्म का इतिहास जानिए: From this page, you can read about Shaivism History. यह जानकारी आपको हिंदी में जी गई है। तो इस पेज को ध्यान पूर्वक पढ़ते रहिए और पोस्ट को और जानिए History of Shaivism and its details only in Hindi.

Shaivism History in Hindi

चलिए जानते हैं आखिर शैव धर्म क्या है।
भगवान शिव की पूजा करने वालों को शैव एवं शिव से संबंधित धर्म को शैव धर्म  कहा गया है। शिवलिंग उपासना का प्रारंभिक पुरातात्विक साक्ष्य हड़प्पा संस्कृति के अवशेषों से मिलता है। 
शैव धर्म के बारे में रोचक जानकारी के श्रोत-

  • ऋग्वेद में शिव के बारे में एक शब्द का उल्लेख हुआ है और वह है रुद्र।
  • अथर्ववेद मैं शिव को भव, शर्व, पशुपति एवं भूपति कहा गया है। 
  • लिंग पूजा का पहला स्पष्ट वर्णन मत्स्यपुराण में मिलता है।
  • महाभारत के अनुशासन पर्व में भी लिंग पूजा का वर्णन मिलता है।
  • रुद्र के पत्नी के रुप में पार्वती का नाम तैतरीय आरण्यक में मिलता है।

वामन पुराण में शिव संप्रदाय की बताई गईं चार संख्यायें-

  1. पाशुपत
  2. कापालिक
  3. काला मुख
  4. लिंगायत

पाशुपत संप्रदाय शैवों का सर्वाधिक पुराना संप्रदाय है।इस संप्रदाय के संस्थापक लकलीश थे जिनको भगवान शिव के 18 अवतारों में से एक माना जाता है। पाशुपत संप्रदाय के अनुयायियों को पंचार्थिक कहा गया है। इस मत का प्रमुख सिद्धांतिक ग्रंथ पाशुपत सूत्र है। श्रीकर पंडित एक विख्यात  पाशुपत आचार्य थे।

कापालिक संप्रदाय- इस संप्रदाय के इष्टदेव भैरव थे तथा इस संप्रदाय का प्रमुख केंद्र  शैल नामक स्थान था। 
कालामुख्य संप्रदाय- इस संप्रदाय के अनुयायियों को शिव पुराण में महावृतधर कहा गया है इस संप्रदाय के लोग नर कपाल में ही भोजन जल तथा सुरापान करते हैं और साथ ही अपने शरीर पर चिता की भस्म मलते हैं।

लिंगायत संप्रदाय- इस संप्रदाय दक्षिण भारत में प्रचलित था इन्हें जंगम भी कहा जाता था तथा इस संप्रदाय के लोग शिवलिंग की उपासना करते थे और दक्षिण भारत में शैव धर्म चालुक्य, राष्ट्रकूट, पल्लव एवं चोलों के समय लोकप्रिय रहा।
बसव पुराण में लिंगायत संप्रदाय के प्रवर्तक अल्लाह को प्रभु तथा उनके शिष्य बसव को बताया गया है।  इस संप्रदाय को वीर शिव संप्रदाय भी कहा जाता है। 10वीं शताब्दी में मत्स्येंद्रनाथ ने नाथ  संप्रदाय की स्थापना की तथा इस संप्रदाय का व्यापक  प्रसार प्रचार बाबा गोरखनाथ के समय में हुआ था।

एलोरा के प्रसिद्ध कैलाश मंदिर का निर्माण राष्ट्रकूटों ने करवाया था तथा चोल शासक राजराज प्रथम ने तंजौर में प्रसिद्ध राजराजेश्वर शिव मंदिर का निर्माण करवाया था जिसे बृहदेश्वर मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।
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