Indian Polity

Inter State Relations in India in Hindi

Inter State Relations in India in Hindi: In this post, I am sharing an important information about Inter State Relations in Hindi. So read the article carefully till the end.

भारतीय संघ  को राज्यों के अंतर्संबंधों को भी देखना पड़ता है जैसे-

  1. अंतर्राज्यीय जल विवादों का न्याय, निर्णयन आदि
  2. अंतर्राज्यीय परिषद द्वारा समन्वयता
  3. , सार्वजनिक कानूनों, दस्तावेजों तथा न्यायिक प्रक्रियायों को पारस्परिक मान्यता
  4. अंतर्राज्यीय व्यापार, वाणिज्य तथा समागम की स्वतंत्रता

इसके अलावा संसद में अंतर्राज्यीय सहभागिता तथा समन्वय का को बढ़ाने के लिए क्षेत्रीय परिषदों का गठन किया है। 

अंतर्राज्यीय जल विवाद–  अनुच्छेद 262 इससे संबंधित है। संसद कानून बनाकर अंतर्राज्यीय नदियों तथा नदी घाटियों के जल प्रयोग, बंटबारे से संबंधित  विवाद की शिकायत न्याय निर्णय कर सकती है। संसद यह भी व्यवस्था कर सकती है ऐसे किसी मामले में ना ही उच्चतम न्यायालय और न कोई अन्य न्यायालय अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करे।

इस प्रावधान के अधीन संसद ने दो कानून बनाए।

  1. नदी वोर्ड अधिनियम 1956- नदियों तथा नदी घाटी से संवंधित
  2. अंतर्राज्यीय जल विवाद 1956- दो या अधिक राज्यों के मध्य नदी अथवा घाटी जल के सम्वंध में

यदि जल विवादों से अधिकार या हित जुड़े हुए हैं तो उच्चतम न्यायालय राज्यों के मध्य जल विवादों की सुनवाई कर सकता है।

कुछ महत्वपूर्ण अंतर्राज्यीय जल विवाद-

क्रम संख्या अंतर्राज्यीय जल विवाद वर्ष संवंधित राज्य
01 कृष्णा जल विवाद न्यायाधिकरण 1969 महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश
02 गोदावरी जल विवाद न्यायाधिकरण 1969 महाराष्ट्र, कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश व उड़ीसा
03 नर्मदा जल विवाद न्यायाधिकरण 969 राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, एवं महाराष्ट्र
04 रावी तथा व्यास जल विवाद न्यायाधिकरण 1986 पंजाव एवं हरियाणा
05 कावेरी जल विवाद न्यायाधिकरण 1990 कर्नाटक, केरल, तमिलनाडू और पुडुचेरी
06 द्वितीय कृष्णा जल विवाद न्यायाधिकरण 2004 महाराष्ट्र, कर्नाटक व आन्ध्र प्रदेश
07 वंशधारा जल विवाद न्यायाधिकरण 2010 उड़ीसा व आन्ध्र प्रदेश
08 महादायी जल विवाद न्यायाधिकरण 2010 गोवा कर्नाटक एवं महाराष्ट्र

अंतर्राज्यीय परिषदें-अनुच्छेद 263 के तहत राज्यों के मध्य व केंद्र तथा राज्यों के मध्य संबंधों के लिए अंतर्राज्यीय परिषद के गठन की व्यवस्था करता है। ऐसी परिषदों का गठन राष्ट्रपति करता है। इसमें राज्यों के मध्य उत्पन्न विवादों की जांच तथा सलाह देना, विचार विमर्श करना आदि राष्ट्रपति का  कार्य है इसीलिए इन परिषदों का गठन हुआ है।
राष्ट्रपति द्वारा परिषदों का गठन-

  1. केंद्रीय स्वास्थ्य परिषद
  2. केंद्रीय स्थानीय विकास व शहरी विकास परिषद
  3. विक्रीकर हेतु उत्तरी, पश्चिमी, पूर्वी तथा दक्षिणी क्षेत्रों के लिए चार क्षेत्रीय परिषद
  4. सरकारिया आयोग की सिफारिश पर 1990 में बी पी सिंह के नेतृत्व वाली जनता दल सरकार में अंतर्राज्यीय परिषद का गठन किया इसमें एक अध्यक्ष जो कि प्रधानमंत्री होता है तथा सभी राज्यों के मुख्यमंत्री और केंद्र शासित प्रदेशों के भी शामिल होते हैं इसके अलावा राष्ट्रपति शासन वाले राज्यों के राज्यपाल तथा प्रधानमंत्री द्वारा नामित 5 केंद्रीय कैबिनेट मंत्री और गृह मंत्री भी शामिल होते हैं।
  5. इस परिषद की 1 वर्ष में तीन बैठकें होती है। इस परिषद की एक स्थाई समिति भी होती है जो 1996 में बनी थी तथा इसके सदस्य केंद्रीय गृहमंत्री अध्यक्ष के रूप में और पांच कैबिनेट मंत्री व 9 मुख्यमंत्री शामिल होते हैं।

लोक अधिनियम, दस्तावेज तथा न्यायिक प्रक्रियाएं- एक राज्य के कानून और दस्तावेज दूसरे राज्य में अमान्य  ना हो इसके लिए दस्तावेजों व न्यायिक प्रक्रियाओं को संपूर्ण भारत में पूर्ण विश्वास व साख प्रदान की गई है।

अंतरराज्यीय व्यापार व वाणिज्य– अनुच्छेद 301 से 307 में भारतीय क्षेत्र के व्यापार, वाणिज्य का समागम है। अनुच्छेद 301 घोषणा करता है कि संपूर्ण भारत में व्यापार, वाणिज्य तथा समागम स्वतंत्रत होगा तथा किसी राज्य की सीमा पर पहले अथवा बाद के स्थानों में प्रतिबंध लगाना अवैध होगा तथा ऐसा करने पर यह 301 का उल्लंघन माना जाएगा।लेकिन संसद इस पर प्रतिबंध लगा सकती है तथा एक राज्य से दूसरे राज्य पर प्राथमिकता नहीं दे सकती।

क्षेत्रीय परिषदे– यह सांविधिक निकाय हैं ना कि संविधानिक। इस कानून ने देश को 5 क्षेत्रों में विभाजित किया है( उत्तर, मध्य, पूर्वी दक्षिणी तथा पश्चिमी) तथा प्रत्येक क्षेत्र के लिए एक क्षेत्रीय परिषद का गठन किया है। इनके निम्नलिखित सदस्य होते हैं।

  1. केंद्र सरकार का गृहमंत्री
  2. सभी राज्यों के मुख्यमंत्री
  3. क्षेत्र के प्रत्येक राज्य से 2 अन्य मंत्री
  4. केंद्र शाषित प्रदेश के प्रशाषक उसी क्षेत्र के तथा क्षेत्रीय परिषद से सलाहकरा के रूप में भी संवंधित हो सकते हैं।
  5. योजना आयोग द्वारा मनोनीय व्यक्ति
  6. क्षेत्र में स्थित प्रत्येक राज्य सरकार के मुख्य सचिव
  7. क्षेत्र के प्रत्येक राज्य के विकास आयुक्त

केंद्र सरकार का गृहमंत्री पांचों क्षेत्रीय परिषदों का अध्यक्ष होता है।तथा प्रत्येक मुख्यमंत्री क्रमानुसार 1 वर्ष के लिए परिषद के उपाध्यक्ष के रूप में कार्य करते हैं।  क्षेत्रीय परिषदों का उद्देष्य राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों तथा केंद्र के बीच सहभागिता तथा समन्वय था को बढ़ावा देना ही इसका उद्देश्य है।

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