Indian Polity

Parliament of India: Parliament of India in Hindi

Parliament of India: Parliament of India in Hindi: In this post, I am sharing an important information about Parliament of India History in Hindi: So read the article carefully till the end. 

संविधान के 5वे भाग के अंतर्गत अनुच्छेद 79 से 122 में संसद के गठन, संरचना, अविधि, अधिकारों व शक्ति के बारे में वर्णन किया गया है।

संसद का गठन– भारत की संसद के तीन अंग है

  1. राष्ट्रपति- राष्ट्रपति संसद के कुछ चुनिंदा कार्य करता है जैसे-  सत्र आहूत , सत्रावसान, विघटित आदि( यह ब्रिटेन पद्धति पर आधारित है)
  2. लोकसभा-  पहला चेंबर व निचला सदन जिसे चर्चित सभा भी कहते हैं।
  3. राज्यसभा- दूसरा चेंबर व उच्च सदन।

1954 में जनता का सदन एवं राज्य परिषद के स्थान पर राज्यसभा, लोकसभा को अपनाया गया है। राज्यसभा में राज्य में संघ राज्य क्षेत्रों के प्रतिनिधि होते हैं जबकि लोकसभा संपूर्ण रूप से भारत के लोगों का प्रतिनिधित्व करती है।

राष्ट्रपति संसद के किसी भी सदन का सदस्य नहीं है और ना ही वह संसद में बैठता है लेकिन वह संसद का अभिन्न अंग है। ऐसा इसलिए है क्योंकि संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित कोई विधेयक तब तक विधि नहीं बनता जब तक उस पर राष्ट्रपति अपनी स्वीकृति नहीं दे देता है।

राज्यसभा की संरचना– राज्यसभा की अधिकतम संख्या 250 है जिसमें 238 राज्यों व संघ राज्य क्षेत्रों के प्रतिनिधि तथा 12 राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत किए गए। संविधान की चौथी अनुसूची में राज्यसभा के लिए राज्यों का संघ राज्य क्षेत्रों में सीटों के आवंटन का विवरण दिया गया है।

  • राज्यों का प्रतिनिधित्व– राज्य सभा में राज्यों के प्रतिनिधि का चयन राज्य की जनसंख्या के आधार पर होता है तथा विधानसभा के निर्वाचित सदस्य उसका चुनाव करते हैं।
  • संघ राज्य क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व– ये प्रतिनिधि एक निर्मित निर्वाचन मंडल द्वारा चुने जाते हैं। छात्र संघ राज्य क्षेत्रों में से सिर्फ दो( दिल्ली व पांडिचेरी) के प्रतिनिधि राज्यसभा में है तथा अन्य की जनसंख्या कम होने के कारण इनके प्रतिनिधि नहीं है। राष्ट्रपति 12 लोगों का चयन उसके कला व संस्कृति के आधार पर नामित करता है।

लोकसभा की संरचना– लोकसभा की अधिकतम संख्या 552 निर्धारित की गई है। जिसमें 530 राज्यों के प्रतिनिधि होते हैं 20 संघ राज्य क्षेत्रों के तथा 2 एंग्लो भारतीय समुदाय के (इन्हें राष्ट्रपति नामित करता है)। 

  • राज्यों के प्रतिनिधित्व-लोक सभा में राज्यों के प्रतिनिधि लोगों द्वारा प्रत्यक्ष रुप से निर्वाचित किए जाते हैं।
  • संघ राज्य क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व– संघ राज्य क्षेत्र 1965 के जरिए यह लोकसभा के सदस्य चुने जाते हैं

लोकसभा की चुनाव प्रणाली– लोकसभा के लिए प्रत्यक्ष निर्वाचन कराने के लिए सभी राज्यों को प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्र में विभाजित किया जाता है। यहां सीटों का आवंटन जनसंख्या के आधार पर किया जाता है तथा प्रत्येक जनगणना के बाद राज्यों को लोकसभा में स्थानों का आवंटन प्रत्येक राज्य सभा को प्रादेशिक क्षेत्र में विभाजित किया जाता है।

अनुसूचित जाति व  जनजातियों के लिए आवंटन– सीटों का आरक्षण- जनसंख्या के अनुपात के आधार पर लोकसभा में इनके लिए सीटें आरक्षित की गई है।  राज्यसभा के लिए आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली है परंतु लोकसभा के लिए नहीं है।

लोकसभा में प्रादेशिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के जरिए सदस्यों को निर्वाचित करने का आधार बनाया गया है। इसके अंतर्गत विधानमंडल का प्रत्येक सदस्य एक भूभागीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करता है।इसे निर्वाचित क्षेत्र कहते हैं जिसमें एक प्रतिनिधि निर्वाचित होता है। ऐसे क्षेत्र को एक कल निर्वाचन क्षेत्र कहते हैं तथा जिसको अधिक मत मिलते हैं वहीं विजई घोषित होता है। इस तरह छोटे से छोटे गांव या शहर वर्ग वाले लोगों को विधानमंडल से इसका हिस्सा मिलता है।

आनुपातिक प्रतिनिधित्व वाली प्रणाली लोकसभा में इसीलिए नहीं अपनाई गई है क्योंकि यह खर्चीली है, यह पार्टी व्यवस्था के महत्व को बढ़ावा देती है, तथा मतदाताओं के महत्व को कम करती हैं।

राज्यसभा की अवधि– राज्य सभा पहली बार 1952 में स्थापित हुई थी तथा यह निरंतर चलने वाली संस्था है यानी यह एक स्थाई संस्था है। इसके  एक तिहाई सदस्य  हर दूसरे वर्ष सेवानिवृत्त होते हैं तथा वह कितनी  बार भी चुनाव लड़ सकते हैं और नामित हो सकते हैं।
राज्यसभा के सदस्यों की पदावधि निर्धारित नहीं की गई है।

लोकसभा की अवधि–   लोकसभा जारी रहने वाली संस्था है। सामान्यतः इसकी अवधि आम चुनाव के बाद हुई पहली बैठक से 5 वर्ष तक होती है। इसके बाद यह खुद ही विघटित हो जाती है। राष्ट्रपति से 5 वर्ष से पहले भी विघटित कर सकता है तथा इसके खिलाफ न्यायालय में चुनौती भी नहीं दी जा सकती। आपातकाल की स्थिति में इसकी अवधि 1 साल तक बढ़ सकती है। लेकिन आपातकाल के बाद 6 महीने से अधिक नहीं होगी।

संसद की सदस्यता– संसद का सदस्य बनने के लिए कम से कम आयु-

  • लोकसभा के लिए 25 वर्ष तथा
  • राज्यसभा के लिए 30 वर्ष होना आवश्यक है।
  • उस व्यक्ति को भारत का नागरिक होना भी परम आवश्यक है।
  • उसे किसी अपराध में 2 वर्ष या उससे अधिक सजा ना हुई हो।
  • उसे सरकारी सेवा से बर्खास्त नहीं होना चाहिए।
  • तथा दल बदल का भी नहीं होना चाहिए मतलब अगर किसी निर्दलीय चुने हुए सदस्य का किसी राजनीतिक दल मैं शामिल होना।

सीटों का रिक्त होना– कोई व्यक्ति यदि दोनों सदनों में चुना जाता है तो उसे 10 दिनों में बताना  होगा कि वह किस सदन में जाना चाहता है अन्यथा राज्यसभा में उसकी सीट खाली हो जाएगी। इसी तरह वह एक समय में संसद में राज्य की विधानमंडल का एक साथ सदस्य नहीं हो सकता। एक सीट उसे छोड़ने की पड़ेगी अन्यथा उसकी दोनों सीटें रिक्त हो जाएगीं।

यदि वह 60 दिन से अधिक बिना अनुमति के सदन की सभा बैठक में अनुपस्थित रहता है तो सदन उसका पद रिक्त कर सकता है। यदि कोई व्यक्ति बिना शपथ लिए अथवा बिना अहर्ता के संसद के सदस्य के रूप में बैठता है तो उसे प्रतिदिन 500 रुपए जुर्माना देने पड़ेंगे।

संसद के दोनों सदनों का वेतन संसद निर्धारित करती है। लोकसभा अध्यक्ष व राज्यसभा के अध्यक्षों का वेतन भी संसद निर्धारित करती है।

संसद के पीठासीन अधिकारी– लोकसभा में अध्यक्ष व उपाध्यक्ष तथा राज्यसभा में सभापति व उपसभापति होते हैं। इसके अलावा लोकसभा में सभापति का पैनल व राज्यसभा में उपसभापति का पैनल भी नियुक्त होता है।

लोकसभा अध्यक्ष– लोकसभा अध्यक्ष पहली बैठक के बाद उपस्थित सदस्यों के बीच से चुना जाता है। तथा लोकसभा अध्यक्ष लोकसभा के जीवन काल तक पद धारण कर सकता है लेकिन कुछ मामलों में पहले भी उस का पद समाप्त हो सकता है। जैसे-

  • यदि  वह सदन का सदस्य नहीं रहता।
  • यदि वह उपाध्यक्ष को संबोधित अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा पदत्याग करें।
  • यदि लोकसभा के सदस्य बहुमत पारित कर उसे पद से हटाए लेकिन इसके लिए पहले उसे 14 दिन की सूचना देनी होगी। लोकसभा के विघटन के बाद भी वह अपने पद पर रहता है

राष्ट्रपति के त्यागपत्र की सूचना उपराष्ट्रपति लोकसभा अध्यक्ष को देता है
लोकसभा अध्यक्ष की भूमिका, शक्ति व कार्य–  वह लोकसभा के प्रतिनिधियों का मुखिया होता है। सदन की कार्यवाही में उसका निर्णय अंतिम है। यह दोनों सदनों की संयुक्त बैठक की अध्यक्षता करता है। राष्ट्रपति के पास जाने वाला विधेयक अध्यक्ष द्वारा सत्यापित  होकर जाता है।

वह लोकसभा के सभी संसदीय समितियों के सभापति नियुक्त करता है। लोकसभा अध्यक्ष को  उसके पद से हटाने के लिए कम से कम 50 सदस्यों की बहुमत जरूरी होती है वह सभी कैबिनेट मंत्रियों में सबसे ऊपर है  तथा लोकसभा अध्यक्ष ही तय करता है कि विधेयक धन विधेयक है या नहीं।

लोकसभा उपाध्यक्ष- लोकसभा उपाध्यक्ष भी लोकसभा के सदस्यों द्वारा चुना जाता है तथा चुनाव की तारीख लोकसभा अध्यक्ष निर्धारित करता है।अध्यक्ष का पद रिक्त होने पर उपाध्यक्ष उनके कार्यों को करता है तथा संसद की बैठक में भी अध्यक्ष की अनुपस्थिति में अध्यक्षता करता है।
अध्यक्ष की उपस्थिति में वह भी अन्य सदस्यों की तरह होता है तथा उसे भी किसी प्रश्न पर मत देने का अधिकार है।

11 वीं लोकसभा के अध्यक्ष सत्ताधारी दल का है और उपाध्यक्ष विपक्षी दल से। यह दोनों को ही अलग शपथ नहीं लेते हैं। 1935 मैं पहला लोकसभा अध्यक्ष जीवी मावलंकर जिन्होंने 10 साल तक पद संभाला था तथा उपाध्यक्ष अनंत सयानाम अयंगर हुए थे।

लोकसभा के सभापतियों की तालिका– अध्यक्ष सदस्यों में से 10 को सभापति तालिका के लिए नामांकित करता है। इनमें से कोई भी अध्यक्ष उपाध्यक्ष की अनुपस्थिति में संसद के पीठासीन अधिकारी हो सकते हैं। वह तब तक पद धारण करता है जब तक नई सभापति तालिका का नामांकन नहीं हो जाता है।

सामायिक अध्यक्ष– राष्ट्रपति लोकसभा के सदस्यों से एक सामायिक अध्यक्ष को चुनता है जो वरिष्ठ होता है तथा राष्ट्रपति ही उसे पद की शपथ दिलाता है। इसका काम नए सदस्यों को शपथ दिलवाना, वह नए अध्यक्ष के लिए चुनाव में मदद करना आदि शामिल है।अध्यक्ष चुने जाने के बाद यह पद सोए ही समाप्त हो जाता है।

राज्यसभा का सभापति– देश का उपराष्ट्रपति इसका पदेन सभापति होता है। जब वह राष्ट्रपति के रूप में कार्य करता है तो सभापति के रूप में काम नहीं करता है। यह सदन का सदस्य नहीं होता है परंतु अध्यक्ष की तरह पहली बार मत नहीं दे सकता लेकिन मत बराबर होने की स्थिति में ही मत दे सकता है।

राज्यसभा का उपसभापति-राज्यसभा का उपसभापति अपने सदस्यों के बीच से ही चुना जाता है।
संसद का सचिवालय– यह दोनों सदनों का प्रथम सचिवालय होता है जो एक स्थाई अधिकारी होता है। तथा इसकी नियुक्ति सदन का अधिकारी करता है।

संसद के नेता– सदन का नेता प्रधानमंत्री होता है। दोनों सदनों में विपक्ष का नेता होता है। सदन के नेता का विपक्ष के नेता का पद संविधान में नहीं दिया गया है।

व्हिप (सचेतक)-प्रत्येक राजनीतिक दल का एक व्हिप होता है वेतन के सहायक के रूप में नियुक्त होता है। तथा यह सदस्यों के व्यवहार पर नजर रखता है और सभी सदस्य उसके निर्देशों का पालन करते हैं।

संसद के सत्र– संसद में 1 साल में 2 सत्र हर 6 महीने में होना अनिवार्य है। सामान्यतः 1 वर्ष में 3 सत्र होते हैं।

  1. बजट सत्र– फरवरी से मई के बीच
  2. मानसून सत्र– जुलाई से सितंबर के बीच
  3. शीतकालीन सत्र–  नबंबर से दिसंबर के बीच

दोनों के बीच समयावधि को अवकाश कहते हैं। संसद के 1 सत्र में काफी बैठकें होती हैं। संसद की बैठक को स्थगित या विघटन द्वारा समाप्त किया जा सकता है तथा बैठक के कार्य कुछ घंटे, दिन यह सप्ताह के लिए निलंबित किया जा सकता है। इस बैठक को अध्यक्ष है या सभापति अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर सकता है। एक स्थाई सदन होने के कारण राज्य सभा विघटित नहीं की जा सकती सिर्फ लोकसभा का ही विघटन होता है।

सत्रावसान– यह बैठक के साथ सदन के सत्र को समाप्त करता है।  इसे राष्ट्रपति द्वारा समाप्त किया जाता है। यह किसी विधेयक पर प्रभाव नहीं डालता तथा बचे हुए काम के लिए अगले सत्र में नोटिस देना पड़ता है।

 गणपूर्ति अथवा कोरम–  कोरम सदस्यों की न्यूनतम संख्या है। यह प्रत्येक सदन में पीठासीन अधिकारी समेत कुल सदस्यों का दसवां हिस्सा होता है। इसका मतलब यह है कि लोकसभा में 55 बार राज्यसभा में 25 सदस्य होने अनिवार्य हैं।

संसद में भाषा–  संसद में भाषा हिंदी,अंग्रेजी व मातृभाषा  लागू है।
लेमलक सत्र–  नई लोक सभा गठन से पूर्व अंतिम वर्तमान लोकसभा का सत्र।
संसदीय कार्यवाही के साधन– संसद का पहला घंटा प्रश्नकाल का होता है जिसके उत्तर मंत्री देते हैं। इसमें तीन तरह के प्रश्न पूछे जाते हैं।

  • तारांकित–  इन प्रश्नों का मौखिक उत्तर दिया जाता है
  • अतारांकित– इन प्रश्नों के उत्तर के लिए लिखित रिपोर्ट होना आवश्यक है
  • अल्प सूचक– इन प्रश्नों  को कम से कम 10 दिन का नोटिस देकर पूछा जाता है तथा इनका उत्तर भी मौखिक ही दिया जाता है।
  • शून्यकाल–  शून्यकाल प्रश्नकाल के तुरंत बाद शुरू होता है।

संसद में विधाई प्रक्रिया– दोनों सदनों में संपन्न होती हैं। प्रत्येक सदन में विधेयक समान चरणों के माध्यम से पारित होता है। विधेयक दो तरह के होते हैं। एक सरकारी दूसरा गैर सरकारी। संसद में प्रस्तुत विधेयकों को चार भागों में वर्गीकृत किया गया है।

  1. साधारण विधि
  2. वित्त विधेयक
  3. धन विधेयक
  4. संविधान संशोधन  विधेयक

साधारण विधेयक– यह विधेयक संसद के किसी भी सदन में प्रस्तुत किया जा सकता है तथा इसे कोई भीमंत्री या सदस्य प्रस्तुत कर सकता है लेकिन इसकी सूचना पहले ही देनी होती है। इस विधेयक को प्रस्तुत करने के बाद इसे राजपत्र में प्रकाशित किया जाता है। इसके दूसरे चरण में इस विधेयक को साधारण बस की अवस्था में लाया जाता है जहां इसकी चर्चा होती है।

इसके बाद यह सदन का बहुमत प्राप्त करता है तो इसे पारित कर दिया जाता है। इसके बाद यह राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है तथा राष्ट्रपति इसको स्वीकृति दे भी सकता है रोक भी सकता है या पुनर्विचार हेतु लौटा सकता है।

धन विधेयक– अनुच्छेद 110 में धन विधेयक की परिभाषा दी गई है। धन विधेयक के संबंध में लोकसभा के अध्यक्ष का निर्णय अंतिम है। यह केवल लोकसभा में राष्ट्रपति की सिफारिश के बाद ही प्रस्तुत होता है। लोकसभा में पारित होने के बाद इसे राज्यसभा में भेजा जाता है। यदि राज्यसभा 14 दिन तक इसे वापस नहीं करती है तो उसे पारित समझा जाएगा। इस विधेयक को राष्ट्रपति स्वीकृति दे सकता, है रोक सकता है लेकिन पुनर्विचार हेतु लौटा नहीं सकता।

वित्त विधेयक– वित्त विधेयक के बारे में अनुच्छेद 117, 117(1) 117(3)  में बताया गया है। यह विधेयक वित्तीय, राज मामले या वित्तीय वर्ष से संबंधित होता है। इसको राष्ट्रपति अपनी स्वीकृति दे सकता है तथा लौटा भी सकता है।

दोनों सदनों की संयुक्त बैठक– यह तब बुलाई जाती है जब-

  1. यदि विधेयक को दूसरे सदन द्वारा अस्वीकृत कर दिया गया है।
  2. यदि सदन विधेयक में किए गए संशोधनों को माननें से सहमत हो।
  3. दूसरे सदन द्वारा बिना विधेयक को पास किए 6 महीने से ज्यादा समय हो जाने पर।

संसद में बजट– संविधान में बजट को वार्षिक वित्तीय विवरण कहा है। बजट शब्द का संविधान में कहीं उल्लेख नहीं किया गया है। इसमें एक वित्तीय वर्ष के दौरान भारत के अनुमानित प्राप्तियां और खर्च का विवरण होता है। राष्ट्रपति इसे हर वित्त वर्ष में संसद के दोनों सदनों में पेश करवाएगा।
बिना राष्ट्रपति की सिफारिश के कोई अनुदान की मांग नहीं की जाएगी। इसे केवल लोकसभा में पुर सथापित किया जा सकता है।बजट में दो प्रकार के व्यय शामिल हैं। भारत की संचित निधि पर भारित व्यय तथा भारत की संचित निधि से किए गए व्यय।

भारित व्ययों के संबंध में सदन में मतदान नहीं होता केवल चर्चा होती है तथा अन्य व्यय पर मतदान कराया जाता है।

भारित व्यय– राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, लोकसभा अध्यक्ष, राज्यसभा के उपसभापति आदि सभी कर्मियों के वेतन भत्ते व पेंशन आदि शामिल है। पारित होने की प्रक्रिया- यह 6 स्तरों से गुजरता है।

बजट का प्रस्तुतीकरण– रेलवे और आम बजट को एक ही दिन पेश किया जाता है पहले इन दोनों को अलग अलग समय में पेश किया जाता था। बजट को वित्त मंत्री पेश करता है तथा बजट पेश करने के समय वित्त मंत्री जो भाषण देता है उसे बजट भाषण कहते हैं। राज्यसभा को अनुदान मांग कटौती पर कोई अधिकार नहीं है।

आम बहस– यह बजट पेश होने के बाद लोकसभा में 3 से 4 दिन तक चलती है।
विभागीय समितियों द्वारा जांच–  बहस के बाद सदन 3 से 4 हफ़्तों के लिए स्थगित हो जाता है तथा उसकी जांच पड़ताल होती है।

अनुदान की मांगों पर मतदान– लोकसभा में इसके लिए मतदान होता है( राज इसके लिए शक्ति नहीं है)। पूर्ण मतदान के बाद मांग अनुदान बन जाती है। राज्यसभा केवल बजट के मताधिकार वाले हिस्से पर मतदान कर सकती है। आम बजट में 109 मांगे होती हैं 103 आम नागरिक व प्रशासन के लिए तथा 6 सेना खर्च के लिए। प्रत्येक मांग पर लोकसभा में अलग-अलग से मतदान होता है। सदस्य अनुदान की मांगों पर कटौती के लिए भी प्रस्ताव ला सकते हैं।

विनियोग बजट का पारित होना– भारत सरकार के विनियोग में हुआ खर्च पर भी चर्चा होती है।
वित्त विधेयक पारित होना– वित्त विधेयक को 75 दिन में प्रभावी हो जाना चाहिए।
निधियां– भारत सरकार में केंद्र सरकार के लिए 03 निधियां है।

  1. भारत की संचित निधि (अनुच्छेद 266)–  इस निधि से सभी प्राप्तियां उधार ली जाती हैं। भारत सरकार द्वारा सभी प्राधिकृत भुगतान इसी निधि से किए जाते हैं। भारत सरकार द्वारा कमाई गई सारी निधि कर आदि  इसी निधि में शामिल हो जाती हैं।
  2. भारत का लोकलेखा–  सभी अन्य सार्वजनिक धन भारत सरकार या उसके लिए इसी से लिए जाते हैं ( संचित निधि को छोड़ कर)।
  3. भारत आकस्मिकता निधि– संविधान संसद को भारत की आकस्मिक निधि के गठन की अनुमति देता है।

इसमें समय-समय पर विधि द्वारा निधियां प्राप्त की जाती हैं। संसद द्वारा यह 1950 से शुरू हुई है। यह निधि राष्ट्रपति के अधिकार में रहते हैं तथा वह किसी अप्रत्याशित व्यय के लिए इसमें अग्रिम दे सकता है।

  •  विधाई शक्तियां व कार्य– संसद का प्रथम कार्य देश के संचालन के लिए विधियां बनाना है। इसके पास संघ सूची तथा अवशिष्ट विषयों पर विधि बनाने का अधिकार है। यदि दो या दो से अधिक राज्यों के बीच कोई विवाद होता है तो संसद समवर्ती सूची के विषयों पर विधि बना सकती है तथा यह विधि राज्य विधानमंडल पर प्रभावी होगी। यह विधियां राष्ट्रपति शासन के दौरान, राष्ट्रीय आपातकाल आदि के दौरान बनती हैं। राष्ट्रपति द्वारा सभी अध्यादेशों को संसद द्वारा 6 सप्ताह के भीतर स्वीकृति मिलनी चाहिए।
  • कार्यकारी शक्ति व कार्य– भारत सरकार के कार्यकारिणी अपनी नीतियों व कार्यों के लिए संसद के प्रति उत्तरदाई होते हैं। सामान्यतः मंत्री संसद के प्रति सामूहिक रूप से जिम्मेदार होते हैं।
  • वित्तीय शक्तियां व कार्य–  संसद की सहमति के बिना कार्यपालिका न कोई कर लगा सकती है और ना किसी प्रकार का व्यय करती है। इसीलिए बजट की स्वीकृति के लिए संसद के समक्ष रखते हैं। संसद विभिन्न समितियों के माध्यम से सरकार के खर्चो की जांच करती है।
  • संविधानिक शक्ति व कार्य– संसद में संविधान संशोधन शक्तियां है। संसद तीन प्रकार से संविधान में संशोधन कर सकती है। साधारण बहुमत द्वारा, विशेष बहुमत द्वारा, विशेष बहुमत द्वारा लेकिन आधे राज्यों के विधान मंडलों की स्वीकृति के साथ। यह शक्तियां संविधान के मूल ढांचे की शर्तानुसार  अनुसार है। इसके अलावा संसद किसी भी व्यवस्था को संशोधित कर सकती है।
  • न्यायिक शक्तियां व कार्य– संविधान के  उल्लंघन करने पर यह राष्ट्रपति को पद मुक्त कर सकती है। उच्चतम न्यायालय, उच्च न्यायालय, नियंत्रक व महालेखा परीक्षक को भी हटाने के लिए राष्ट्रपति से सिफारिश कर सकती है।
  • निर्वाचक शक्ति व कार्य– संसद राष्ट्रपति के निर्वाचन में राज्य विधानसभाओं के साथ भाग लेती है और उपराष्ट्रपति को चुनती है। लोकसभा अपने अध्यक्ष व उपाध्यक्ष को जबकि राज्यसभा उपसभापति का चयन करती है।
  • अन्य शक्तियां व कार्य– यह राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर बहस करती है व विचार विमर्श भी करती है।

संसद तीनों तरह के आपातकाल की संस्तुति करती है। राज्यों की सीमा व नाम में परिवर्तन कर सकती है। उच्चतम न्यायालय एवं उच्च न्यायालय के गठन एवं न्याय क्षेत्र को नियंत्रित करती है।
संसद की समिति– संसद अपने समक्ष आने वाले मुद्दों पर प्रभावी रूप से विचार करती है। इसका कार्य अत्यंत जटिल व व्यापक है। इसके कार्यों को संपादित करने के लिए विभिन्न संसदीय समितियां इसकी सहायता करती हैं।

1. लोक लेखा समिति– इसकी स्थापना 1921 में की गई थी। लोक लेखा समिति में 22 सदस्य होते हैं जो कि 15 लोकसभा से तथा साथ राज्यसभा से।  इनका चयन संसद हर साल अपने सदस्यों के बीच से करती है। समिति का कार्य सीएजी की वार्षिक रिपोर्ट की जांच करना है जिसे राष्ट्रपति संसद के समक्ष रखता है।

  •  लोक लेखा समिति का कार्य केंद्र सरकार के विनियोग खाता एवं वित्त खातों की जांच और संसद के समक्ष रखी अन्य खातों की जांच इन सभी कार्यों की पूर्ति के लिए समिति को नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक द्वारा सहायता की जाती है।

2. प्राक्कलन समिति– प्राक्कलन समिति में 30 सदस्य है जो कि सभी लोकसभा से हैं राज्यसभा का इससे कोई मतलब नहीं है। सदस्यों का कार्यकाल 1 वर्ष का होता है।

  • प्राक्कलन समिति का कार्य– बजट में सम्मिलित अनुमानों की जांच करना और लोक व्यय में मितव्ययिता के सुझाव देना। अतः इसे आर्थिक समिति कहा जाता है।

3. सरकारी उपक्रमों संबंधित समिति– यह कृष्ण मेनन समिति के सुझाव पर 1964 में बनाई गई थी। इस समिति में 22 सदस्य होते हैं जिस में लोकसभा के 15 तथा राज्य सभा के 7 सदस्य मौजूद होते हैं। इस का कार्यकाल 1 वर्ष का होता है। इसका सभापति लोकसभा अध्यक्ष द्वारा चुना जाता है तथा लोकसभा का ही होता है राज्यसभा का नहीं।

  • सरकारी उपक्रमों संबंधित समिति के कार्य– सरकारी उपक्रमों के लेखा एवं रिपोर्ट का परीक्षण करना। तथा सरकारी उपक्रमों पर कैग की रिपोर्ट का परीक्षण करना आदि इसके  कार्यों में शामिल है।

इन समितियों के अलावा और भी कई समितियां है जैसे अनुसूचित जनजाति कल्याण समिति, सदस्यों की अनुपस्थिति संबंधित समिति, नियम समिति, सदस्यों के वेतन, भत्तों संबंधित समिति।
संसद की संप्रभुता का सिद्धांत ब्रिटेन से लिया गया है।
कुछ महत्वपूर्ण तथ्य

  • पहली लोकसभा के अध्यक्ष- गणेश वासुदेव मावलंकर।
  • दो बार त्यागपत्र देने वाले- नीलम संजीवन रेड्डी।
  • 16वीं लोक सभा अध्यक्ष- सुमित्रा महाजन

Articles related to Parliament of India

अनुच्छेद 79- संसद का संगठन
अनुच्छेद 80- राज्य सभा का संगठन
अनुच्छेद 81- लोकसभा का संगठन
अनुच्छेद 82-प्रत्येक जनगणना के बाद पुनर्समायोजन
अनुच्छेद 83- संसद के सदनों की अवधि
अनुच्छेद 84-  संसद की सदस्यता के लिए योग्यता
अनुच्छेद 85-  संसद के सत्र, सत्रावसान एवं विघटन
अनुच्छेद 86-   राष्ट्रपति का सदनों को संबोधित करने का अधिकार है
अनुच्छेद 87- राष्ट्रपति का विशेष संबोधन तथा संसद के पदाधिकारी व गढ़
अनुच्छेद 89- राज्यसभा के सभापति व उपसभापति
अनुच्छेद 90- उपसभापति की रिक्ति, त्यागपत्र व विमुक्ति
अनुच्छेद 91- सभापति के रूप में कार्य करने के उपसभापति की शक्ति
अनुच्छेद 92- सभापति अथवा उपसभापति का सदन की अध्यक्षता से विरत रहना
अनुच्छेद 93- लोकसभा के अध्यक्ष का उपाध्यक्ष
अनुच्छेद 94- लोकसभा पद की रिक्ति, त्याग पत्र तथा विमुक्ति
अनुच्छेद 95- लोकसभा अध्यक्ष के रूप में किसी अन्य के कार्य करने की शक्ति
अनुच्छेद 96- सदन की अध्यक्षता से विरत रहना
अनुच्छेद 97- सभापति एवं उपसभापति तथा अध्यक्ष उपाध्यक्ष के वेतन व भत्ते
अनुच्छेद 98- संसद सचिवालय कार्यवाही व संचालन
अनुच्छेद 99- सदस्यों द्वारा शपथ ग्रहण
अनुच्छेद 100- दोनों सदनों में मतदान कोरम की पूर्ति के बिना भी कार्य करने का अधिकार
अनुच्छेद 101- सीटों की रिक्ति
अनुच्छेद 105- संसद के सदनों तथा सदस्यों एवं समितियों की शक्तियां
अनुच्छेद 106- सदस्यों के वेतन व भत्ते
अनुच्छेद 107-  विधायकों की प्रस्तुति एवं पारित करने संबंधी प्रावधान
अनुच्छेद 108- कतिपय मामलों में दोनों सदनों की संयुक्त बैठक
 अनुच्छेद 109- मुद्रा विधेयक मामलों में विशेष प्रतिक्रिया
अनुच्छेद 110- मुद्रा  विधेयक की परिभाषा
अनुच्छेद 111- विधेयक की विधायक की स्वीकृति
अनुच्छेद 112- वार्षिक वित्तीय विवरण
अनुच्छेद 113- संसद में प्राक्कलनों संबंधित प्रक्रिया
अनुच्छेद 114- विनियोजन विधेयक
अनुच्छेद 120- संसद में उपयोग की जाने वाली भाषा
अनुच्छेद 121-  संसद में चर्चा पर प्रतिबंध
अनुच्छेद 122- संसद की कार्यवाही के मामलों में न्यायालय पूछताछ नहीं करता
अनुच्छेद 123- संसद के अवकाश काल में राष्ट्रपति के अध्यादेश जारी करने की  शक्तियां
अगर आपने इसका पहला भाग नहीं पढ़ा है तो उसके लिए नीचे दी गई लिंक पर क्लिक करें

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